पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश 

१. १२. २०२४1

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माटी की मटकी
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माटी की मटकी में दीपक जलता है
हिरण्यगर्भ यह सब अँधियारा
हरता है
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मटकी जगमग है, दीवाली का दिन है
घोर अँधेरे में उजियाली का दिन है
खील बताशे पूजन
धूम धड़ाके हैं
लोग चतुर्दिक स्वस्ति-
कथाएँ गाते हैं
धरती से आकाश तलक आवाजें हैं

अभिनंदन के गुच्छे, गाजे बाजे हैं
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समृद्धि है हर ओर अनोखी नवता है
उत्सव है इक धर्म
अहर्निश चलता है
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दीप्ति दिये की जब इक दिन बुझ जाएगी
मटकी की जगमग उस दिन मुरझाएगी
खील बताशे पूजन सब
चुक जाएँगे
स्वस्ति कथाएँ लोग
भूल ही जाएँगे
माटी की मटकी खुद से मिल जाएगी
और मिलन का स्वर्ग अकेले पाएगी
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दीवाली की पर्व यही तो कहता है
जीवन इसी चक्र में ही
तो चलता है
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- पूर्णिमा वर्मन
इस माह
(सर्दी के मौसम में)

गीतों में-

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उमा प्रसाद लोधी

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ओमप्रकाश नौटियाल

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कमलेश कुमार दीवान

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कल्याण सिंह शेखावत

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जयकृष्ण राय तुषार

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जय प्रकाश श्रीवास्तव

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जिज्ञासा सिंह

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जे पी बघेल डॉ

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निर्मला जोशी निर्मल

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पूर्णिमा वर्मन

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भगवत स्वरूप 'शुभम्' डॉ.

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मंजुलता श्रीवास्तव डॉ.

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मधु प्रधान

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मुकुट सक्सेना

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रघुवीर शर्मा

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रमेश प्रसून

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राजा अवस्थी

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राजकुमार महोबिया

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रामावतार सागर डॉ.

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विजय सिंह

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विनय विक्रम सिंह मनकही

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विश्वंभर शुक्ल प्रो.

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वीरेन्द्र आस्तिक

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श्याम सनेही लाल शर्मा

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श्याम सुंदर तिवारी

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शिवानंद सिंह सहयोगी

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सत्य

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सुरेन्द्र पाल वैद्य

छंदों में-

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अशोक रक्ताले

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पारुल तोमर

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मंजु गुप्ता

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संजीव सलिल

अंजुमन में-

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अमित खरे

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परमजीत कौर रीत

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विनीता तिवारी

छंदमुक्त में-

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आभा खरे

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संजय सुजल बासल

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